शनिवार, 22 नवंबर 2008
धर्म की बात.......
वो अमन की फिज़ा को मिटाने में लगें है
था काम जिनका, धर्म की बातों को बताना
इन्सान का वो खून बहाने में लगे है !
था अमन यहाँ , मेल यहाँ , और प्यार मोहब्बत
कुछ लोग हैं, जो उसको जलाने में लगे है
रहते थे सभी लोग यहाँ मिल के मेरे यार
अब इक दुसरे से खुद को बचाने में लगे है !
इंसान को इंसान बनाना था जिसे ही
इंसान को वहशी वो बनाने में लगे है
"अय्यूब " को देखो, कि वो महरूम है इतना
हालत पे अशआर (शायरी) जुटाने में लगे है.
(इस गज़ल का ख्याल मुझे तब आया , जब कुछ दिनों पहले धर्म के ठेकेदारों के यहाँ से फिज़ा ख़राब करने के सुबूत मिले , आपको कैसा लगा जरूर लिखें )
गुरुवार, 6 नवंबर 2008
इंसाफ का कातिल ...?
इन्साफ क़त्ल हो गया मुंसिफ के हाथ से
कानून मिट के रह गया मुहाफिज़ के हाथ से
वो क़त्ल करके लोगों का साफ़ बच गया
इंसानियत का नाम मिटा उसके हाथ से
सब बे गुनाह लोग थे जो क़त्ल हो गए
मासूम बच्चे क़त्ल हुए उसके हाथ से
बूढे - जवान लोग सभी मारे गए थे
इज्ज़त भी न थी यार उस के हाथ से
अच्छे हुक्मरान का लक़ब उसको मिल गया
सर हिन्द का तो झुकता रहा उसके हाथ से
जालिम भी है , जाबिर भी है , यह "अय्यूब" ने कहा
है महफूज़ कोई भी न रहा उसके हाथ से .....
- (अय्यूब मेरा तखल्लुस है )
बुधवार, 5 नवंबर 2008
गद्दार कौन ?
मेरा जवाब - दोस्तों शायरी मोहब्बत के सिवा कुछ नहीं ....अच्छे लोगों, इंसानियत से मोहब्बत करो , शायरी तोगडिया के हाथों का त्रिशूल नहीं है ...शायरी रविशंकर के हाथों का सितार है ...शायरी उमा भारती की तक़रीर नहीं ....महादेवी वर्मा की तहरीर है ...लता मंगेशकर की आवाज की तासीर है ...शायरी मोदी का गुजरात नहीं है...मुंशी प्रेम चन्द्र का देहात है...
- आपका अलाउद्दीन
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
हम गद्दार नहीं...
तारीख बदलने से हालत नहीं मिटते
कानून बदलने से गद्दार नहीं मिटते
कितनी भी करो कोशिश तारीख बदलने की
इस देश पर अपने एहसान नहीं मिटते
गद्दार कहो हमको ,गद्दार नहीं लेकिन
इस दिल से मोहब्बत के एहसास नहीं मिटते
तारीख़ बदलने से रूदाद नहीं बदलेगी
ये ताज महल,लालकिला,मीनार नहीं मिटते
हमने भी कटाई है ,जब वक़्त पडी गर्दन
उस खून को तुम देखो ,निशान नहीं मिटते
हमको भी मोहब्बत है इस देश के मिटटी से
अय्यूब के कलम के , तो अल्फाज़ नहीं मिटते