तारीख बदलने से हालत नहीं मिटते
कानून बदलने से गद्दार नहीं मिटते
कितनी भी करो कोशिश तारीख बदलने की
इस देश पर अपने एहसान नहीं मिटते
गद्दार कहो हमको ,गद्दार नहीं लेकिन
इस दिल से मोहब्बत के एहसास नहीं मिटते
तारीख़ बदलने से रूदाद नहीं बदलेगी
ये ताज महल,लालकिला,मीनार नहीं मिटते
हमने भी कटाई है ,जब वक़्त पडी गर्दन
उस खून को तुम देखो ,निशान नहीं मिटते
हमको भी मोहब्बत है इस देश के मिटटी से
अय्यूब के कलम के , तो अल्फाज़ नहीं मिटते