शनिवार, 22 नवंबर 2008

धर्म की बात.......

दहशत का जो माहौल बनाने में लगें है
वो अमन की फिज़ा को मिटाने में लगें है
था काम जिनका, धर्म की बातों को बताना
इन्सान का वो खून बहाने में लगे है !
था अमन यहाँ , मेल यहाँ , और प्यार मोहब्बत
कुछ लोग हैं, जो उसको जलाने में लगे है
रहते थे सभी लोग यहाँ मिल के मेरे यार
अब इक दुसरे से खुद को बचाने में लगे है !
इंसान को इंसान बनाना था जिसे ही
इंसान को वहशी वो बनाने में लगे है
"अय्यूब " को देखो, कि वो महरूम है इतना
हालत पे अशआर (शायरी) जुटाने में लगे है.

(इस गज़ल का ख्याल मुझे तब आया , जब कुछ दिनों पहले धर्म के ठेकेदारों के यहाँ से फिज़ा ख़राब करने के सुबूत मिले , आपको कैसा लगा जरूर लिखें )