मंगलवार, 4 नवंबर 2008

हम गद्दार नहीं...

तारीख बदलने से हालत नहीं मिटते

कानून बदलने से गद्दार नहीं मिटते

कितनी भी करो कोशिश तारीख बदलने की

इस देश पर अपने एहसान नहीं मिटते

गद्दार कहो हमको ,गद्दार नहीं लेकिन

इस दिल से मोहब्बत के एहसास नहीं मिटते

तारीख़ बदलने से रूदाद नहीं बदलेगी

ये ताज महल,लालकिला,मीनार नहीं मिटते

हमने भी कटाई है ,जब वक़्त पडी गर्दन

उस खून को तुम देखो ,निशान नहीं मिटते

हमको भी मोहब्बत है इस देश के मिटटी से

अय्यूब के कलम के , तो अल्फाज़ नहीं मिटते

7 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अगर आप यह बात भारत के मुसलमानों की और से कह रहे हैं तो मैं यह कहना चाहूँगा कि कभी किसी ने मुसलमानों को गद्दार नहीं कहा. मुसलमान और हिंदू इस देश की संतान हैं, और संतान गद्दार नहीं होती. इक्का-दुक्का लोग अपने रास्ते से भटक जाते हैं. ऐसे लोग किसी धर्म विशेष से सम्बन्ध नहीं रखते. सब धर्मों में ऐसे लोग पाये जाते हैं.

मुसलमानों को अपने दिल से यह शक मिटाना होगा कि हिंदू उन्हें गद्दार मानते हैं, पूरी मुस्लिम कौम को आतंकवादी मानते हैं. आतंकवादी का कोई शर्म नहीं होता. आज कल कुछ हिंदू आतंकवाद के आरोपों में घिरे हुए हैं. जांच चल रही है. अगर यह अपराधी हैं तो इन्हें इस देश के कानून के अनुसार सजा मिलेगी. मगर यह बहुत ही अफ़सोस की बात हैं कि कुछ शिक्षित मुसलमानों का रवैया इस मुद्दे पर बहुत नकारात्मक है. उन्होंने 'हिंदू आतंकवाद' जैसे ग़लत शब्द इस्तेमाल करने शुरू कर दिए हैं. वह जांच पूरी होने तक सब्र नहीं करना चाहते.उन्हें लगता है कि ऐसा करके वह उन मुसलमानों को निर्दोष साबित कर देंगे जिन्हें आतंकवाद के अपराधों में गिरफ्तार किया गया है. यह उनकी बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है. कौन अपराधी है और कौन नहीं, इस का फ़ैसला अदालत करेगी.

इस तरह की ग़लत बयानी से अविश्वास और बढ़ता है. आज सुबह पार्क में एक सज्जन ने कहा कि अब तो शिक्षित मुसलमानों से भी डर लगने लगा है. अमिन उन से इस बात पर सहमत नहीं हूँ, पर यह इस बात का सूचक है कि इस ग़लत बयानी से कितना नुक्सान हो रहा है. हिंदू और मुसलमानों के बीच खाई और चोड़ी हो रही है. क्या इस से मुसलमानों का भला होगा?

आइये प्रेम और परस्पर विश्वास की बात करें. नफरत और अविश्वास को अपने दिल से निकाल दें.

ALAUDDIN AYUB ने कहा…

सुरेश साहब सबसे पहले आपका शुक्रिया कि अपने मुझे पढ़ा ....मुझे नहीं लगता कि लिखते वक़्त कभी कलम से गलत लिखा जाना चाहेए...(जैसा कि हमारे मुल्क में छूट है ) जहाँ तक मेरा सवाल है तो मैंने सिर्फ सच लिखने कि कोशिश कि है...और आपने मुझे समझाने कि ....सिर्फ चौबीस साल कि उम्र में पता नहीं कितने लोगो के सवालो का जवाब दे चूका हूँ कि मुस्लमान कौन है ...और इसलाम क्या है ...लेकिन लोग शक ही करते है ...जैसा कि आपने भी पार्क में टाहलने की घटना का जिक्र किया है....की आज पढ़े लिखे भी गलत हो गए है ...आप भी सब्र नहीं कर सके और पार्क के बहाने कुछ बातें लिख दी ....ऐसे ही कमेन्ट लोग हमें रोज सुनने पड़ते है और शक करते है...क्या आप मुझे बता सकते है रा और आई.बी.में कितने पतिशत हम लोग है ...देखिये लिखना और कमेन्ट करना आसान है..लेकिन एहसास जिसको करना पड़ता है उसके लिए काफी मुश्किल होता है ....मुझे सच लिखने दीजिये और आप मुझे पढ़ते रहिये ...आपके कमेन्ट का स्वागत ...

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

jabardast tarif-e-kabil mere dost......
bahut hi umda likha hai......
ummid hai ye jazba kayam rahe......
meri mubarakbaad kabul kijiye is jordaarhna k rachna k liye ....
mai hindu huin aur fakr se aapko apna bhai manta huin......
appka bhai akshay-mann

हिन्दीवाणी ने कहा…

excellent poetry. After sometime I will carry some of your poetry on my blog. Keep the sprit. You are welcome at my blog.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

aap jo bhee hain ye samajh le ki hindustan hee wah desh hai janha musalman ko uske dharmanusar, isai ko uske apne dharmanusar rahane ki khuli chhuth ke sathsath kuchh bhee karne kiaajadi hai
narayan narayan

Amit K Sagar ने कहा…

ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. दूसरों को राह दिखाते रहिये. आगे बढ़ते रहिये, अपने साथ-साथ औरों को भी आगे बढाते रहिये. शुभकामनाएं.
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साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

मोहब्बत है इस देश के मिटटी से अय्यूब के कलम के , तो अल्फाज़ नहीं मिटते
आपकी रचना बेहतरीन और देशभक्ति से औत प्रौत है । बधाई । लिखते रहिए ।
कविता और गज़ल के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।